अंतिम प्रभा का है हमारा विक्रमी संवत यहाँ, है किन्तु औरों का उदय इतना पुराना भी कहाँ ?
ईसा,मुहम्मद आदि का जग में न था तब भी पता, कब की हमारी सभ्यता है, कौन सकता है बता? -मैथिलिशरण गुप्त

सोमवार, 18 मार्च 2013

वैदिक काल गणना भाग - 1 {Ancient Time Calculas-1}

1. सम्वत्सर(hindu new year) की वैज्ञानिकता

बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक पश्चिमी देशों में उनके अपने धर्म-ग्रन्थों के अनुसार मानव सृष्टि को मात्र पांच हजार वर्ष पुराना बताया जाता था। जबकि इस्लामी दर्शन में इस विषय पर स्पष्ट रूप से कुछ भी नहीं कहा गया है। पाश्चात्य जगत के वैज्ञानिक भी अपने धर्म-ग्रन्थों की भांति ही यही राग अलापते रहे कि मानवीय सृष्टि का बहुत प्राचीन नहीं है। इसके विपरीत हिन्दू जीवन-दर्शन के अनुसार इस सृष्टि का प्रारम्भ हुए १ अरब, ९७ करोड़, २९ लाख, ४९ हजार, १० वर्ष बीत चुके हैं और अब चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से उसका १ अरब, ९७ करोड़, २९ लाख, ४९ हजार, ११वां वर्ष प्रारम्भ हो रहा है। भूगर्भ से सम्बन्धित नवीनतम आविष्कारों के बाद तो पश्चिमी विद्वान और वैज्ञानिक भी इस तथ्य की पुष्टि करने लगे हैं कि हमारी यह सृष्टि प्राय: २ अरब वर्ष पुरानी है।


अपने देश में हेमाद्रि संकल्प में की गयी सृष्टि की व्याख्या के आधार पर इस समय स्वायम्भुव, स्वारोचिष, उत्तम, तामस, रैवत और चाक्षुष नामक छह मन्वन्तर पूर्ण होकर अब वैवस्वत मन्वन्तर के २७ महायुगों के कालखण्ड के बाद अठ्ठाइसवें महायुग के सतयुग, त्रेता, द्वापर नामक तीन युग भी अपना कार्यकाल पूरा कर चौथे युग अर्थात कलियुग के ५०११वें सम्वत्‌ का प्रारम्भ हो रहा है। इसी भांति विक्रम संवत्‌ २०६६ का भी श्रीगणेश हो रहा है।

हिन्दू जीवन-दर्शन की मान्यता है कि सृष्टिकर्ता भगवान्‌ व्रह्मा जी द्वारा प्रारम्भ की गयी मानवीय सृष्टि की कालगणना के अनुसार भारत में प्रचलित सम्वत्सर केवल हिन्दुओं, भारतवासियों का ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण संसार या समस्त मानवीय सृष्टि का सम्वत्सर है। इसलिए यह सकल व्रह्माण्ड के लिए नव वर्ष के आगमन का सूचक है।

व्रह्मा जी प्रणीत यह कालगणना निसर्ग अथवा प्रकृति पर आधारित होने के कारण पूरी तरह वैज्ञानिक है। अत: नक्षत्रों को आधार बनाकर जहां एक ओर विज्ञानसम्मत चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कात्तिर्क, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन नामक १२ मासों का विधान एक वर्ष में किया गया है, वहीं दूसरी ओर सप्ताह के सात दिवसों यथा रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार तथा शनिवार का नामकरण भी व्रह्मा जी ने विज्ञान के आधार पर किया है।

आधुनिक समय में सम्पूर्ण विश्व में प्रचलित ईसाइयत के ग्रेगेरियन कैलेण्डर को दृष्टिपथ में रखकर अज्ञानी जनों द्वारा प्राय: यह प्रश्न किया जाता है कि व्रह्मा जी ने आधा चैत्र मास व्यतीत हो जाने पर नव सम्वत्सर और सूर्योदय से नवीन दिवस का प्रारम्भ होने का विधान क्यों किया है? इसी भांति सप्ताह का प्रथम दिवस सोमवार न होकर रविवार ही क्यों निर्धारित किया गया है? जैसा ऊपर कहा जा चुका है, व्रह्मा जी ने इस मानवीय सृष्टि की रचना तथा कालगणना का पूरा उपक्रम निसर्ग अथवा प्रकृति से तादात्म्य रखकर किया है। इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि ‘चैत्रमासे जगत्‌ व्रह्मा संसर्ज प्रथमेऽहनि, शुक्ल पक्षे समग्रे तु तदा सूर्योदय सति।‘ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिवस को सूर्योदय से कालगणना का औचित्य इस तथ्य में निहित है कि सूर्य, चन्द्र, मंगल, पृथ्वी, नक्षत्रों आदि की रचना से पूर्व सम्पूर्ण त्रैलोक्य में घटाटोप अन्धकार छाया हुआ था। दिनकर(सूर्य) की उत्पत्ति के साथ इस धरा पर न केवल प्रकाश प्रारम्भ हुआ अपितु भगवान्‌ आदित्य की जीवनदायिनी ऊर्जा शक्ति के प्रभाव से पृथ्वी तल पर जीव-जगत का जीवन भी सम्भव हो सका। चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के स्थान पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से वर्ष का आरम्भ, अर्द्धरात्रि के स्थान पर सूर्योदय से दिवस परिवर्तन की व्यवस्था तथा रविवार को सप्ताह का प्रथम दिवस घोषित करने का वैज्ञानिक आधार तिमिराच्छन्न अन्धकार को विदीर्ण कर प्रकाश की अनुपम छटा बिखेरने के साथ सृजन को सम्भव बनाने की भगवान्‌ भुवन भास्कर की अनुपमेय शक्ति में निहित है। वैसे भी इंग्लैण्ड के ग्रीनविच नामक स्थान से दिन परिवर्तन की व्यवस्था में अर्द्ध रात्रि के १२ बजे को आधार इसलिए बनाया गया है; क्योंकि जब इंग्लैण्ड में रात्रि के १२ बजते हैं, तब भारत में भगवान्‌ सूर्यदेव की अगवानी करने के लिए प्रात: ५.३० बजे होते हैं।

वारों के नामकरण की विज्ञान सम्मत प्रक्रिया में व्रह्मा जी ने स्पष्ट किया कि आकाश में ग्रहों की स्थिति सूर्य से प्रारम्भ होकर क्रमश: बुध, शुक्र, चन्द्र, मंगल, गुरु और शनि की है। पृथ्वी के उपग्रह चन्द्रमा सहित इन्हीं अन्य छह ग्रहों को साथ लेकर व्रह्मा जी ने सप्ताह के सात दिनों का नामकरण किया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पृथ्वी अपने उपग्रह चन्द्रमा सहित स्वयं एक ग्रह है, किन्तु पृथ्वी पर उसके नाम से किसी दिवस का नामकरण नहीं किया जायेगा; किन्तु उसके उपग्रह चन्द्रमा को इस नामकरण में इसलिए स्थान दिया जायेगा; क्योंकि पृथ्वी के निकटस्थ होने के कारण चन्द्रमा आकाशमण्डल की रश्मियों को पृथ्वी तक पहुँचाने में संचार उपग्रह का कार्य सम्पादित करता है और उससे मानवीय जीवन बहुत गहरे रूप में प्रभावित होता है। लेकिन पृथ्वी पर यह गणना करते समय सूर्य के स्थान पर चन्द्र तथा चन्द्र के स्थान पर सूर्य अथवा रवि को रखा जायेगा।

हम सभी यह जानते हैं कि एक अहोरात्र या दिवस में २४ होरा या घण्टे होते हैं। व्रह्मा जी ने इन २४ होरा या घण्टों में से प्रत्येक होरा का स्वामी क्रमश: सूर्य, शुक्र, बुध, चन्द्र, शनि, गुरु और मंगल को घोषित करते हुए स्पष्ट किया कि सृष्टि की कालगणना के प्रथम दिवस पर अन्धकार को विदीर्ण कर भगवान्‌ भुवन भास्कर की प्रथम होरा से क्रमश: शुक्र की दूसरी, बुध की तीसरी, चन्द्रमा की चौथी, शनि की नौवीं, गुरु की छठी तथा मंगल की सातवीं होरा होगी। इस क्रम से इक्कीसवीं होरा पुन: मंगल की हुई। तदुपरान्त सूर्य की बाईसवीं, शुक्र की तेईसवीं और बुध की चौबीसवीं होरा के साथ एक अहोरात्र या दिवस पूर्ण हो गया। इसके बाद अगले दिन सूर्योदय के समय चन्द्रमा की होरा होने से दूसरे दिन का नामकरण सोमवार किया गया। अब इसी क्रम से चन्द्र की पहली, आठवीं और पंद्रहवीं, शनि की दूसरी, नववीं और सोलहवीं, गुरु की तीसरी, दशवीं और उन्नीसवीं, मंगल की चौथी, ग्यारहवीं और अठ्ठारहवीं, सूर्य की पाचवीं, बारहवीं और उन्नीसवीं, शुक्र की छठी, तेरहवीं और बीसवीं, बुध की सातवीं, चौदहवीं और इक्कीसवीं होरा होगी। बाईसवीं होरा पुन: चन्द्र, तेईसवीं शनि और चौबीसवीं होरा गुरु की होगी। अब तीसरे दिन सूर्योदय के समय पहली होरा मंगल की होने से सोमवार के बाद मंगलवार होना सुनिश्चित हुआ। इसी क्रम से सातों दिवसों की गणना करने पर वे क्रमश: बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार तथा शनिवार घोषित किये गये; क्योंकि मंगल से गणना करने पर बारहवीं होरा गुरु पर समाप्त होकर बाईसवीं होरा मंगल, तेईसवीं होरा रवि और चौबीसवीं होरा शुक्र की हुई। अब चौथे दिवस की पहली होरा बुध की होने से मंगलवार के बाद का दिन बुधवार कहा गया। अब बुधवार की पहली होरा से इक्कीसवीं होरा शुक्र की होकर बाईसवीं, तेईसवीं और चौबीसवीं होरा क्रमश: बुध, चन्द्र और शनि की होगी। तदुपरान्त पांचवें दिवस की पहली, होरा गुरु की होने से पांचवां दिवस गुरुवार हुआ। पुन: छठा दिवस शुक्रवार होगा; क्योंकि गुरु की पहली, आठवीं, पन्द्रहवीं और बाईसवीं होरा के पश्चात्‌ तेईसवीं होरा मंगल और चौबीसवीं होरा सूर्य की होगी। अब छठे दिवस की पहली होरा शुक्र की होगी। सप्ताह का अन्तिम दिवस शनिवार घोषित किया गया; क्योंकि शुक्र की पहली, आठवीं, पन्द्रहवीं और बाईसवीं होरा के उपरान्त बुध की तेईसवीं और चन्द्रमा की चौबीसवीं होरा पूर्ण होकर सातवें दिवस सूर्योदय के समय प्रथम होरा शनि की होगी।

संक्षेप में व्रह्मा जी प्रणीत इस कालगणना में नक्षत्रों, ऋतुओं, मासों, दिवसों आदि का निर्धारण पूरी तरह निसर्ग अथवा प्रकृति पर आधारित वैज्ञानिक रूप से किया गया है। दिवसों के नामकरण को प्राप्त विश्वव्यापी मान्यता इसी तथ्य का प्रतीक है।

[क्रमश:]

लेखक - सुरेश सोनी
 साभार : बेगपाल मलिक www.facebook.com/begpal.malik

9 टिप्‍पणियां:

  1. इसमें कहा गया है, अंतिम के दो पैराग्राफ देखिये ...

    वारों के नामकरण की विज्ञान सम्मत प्रक्रिया में व्रह्मा जी ने स्पष्ट किया कि आकाश में ग्रहों की स्थिति सूर्य से प्रारम्भ होकर क्रमश: बुध, शुक्र, चन्द्र, मंगल, गुरु और शनि की है।

    व्रह्मा जी ने इन २४ होरा या घण्टों में से प्रत्येक होरा का स्वामी क्रमश: सूर्य, शुक्र, बुध, चन्द्र, शनि, गुरु और मंगल को घोषित करते हुए स्पष्ट किया कि सृष्टि की कालगणना के प्रथम दिवस पर अन्धकार को विदीर्ण कर भगवान्‌ भुवन भास्कर की प्रथम होरा से क्रमश: शुक्र की दूसरी, बुध की तीसरी, चन्द्रमा की चौथी, शनि की नौवीं, गुरु की छठी तथा मंगल की सातवीं होरा होगी।

    ब्रह्मा जी ने शुक्र को क्यों दुसरे घंटा का स्वामित्व दिया है, और बुध को तीसरे घंटे का का स्वामित्व दिया है| इसके पीछे क्या तर्क है, मेरा मतलब बुध को दूसरा घंटा और शुक्र को तीसरा घंटा होना चाहिए था|

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  2. // व्रह्मा जी ने इन २४ होरा या घण्टों में से प्रत्येक होरा का स्वामी क्रमश: सूर्य, शुक्र, बुध, चन्द्र, शनि, गुरु और मंगल को घोषित करते हुए स्पष्ट किया कि सृष्टि की कालगणना के प्रथम दिवस पर अन्धकार को विदीर्ण कर भगवान्‌ भुवन भास्कर की प्रथम होरा से क्रमश: शुक्र की दूसरी, बुध की तीसरी, चन्द्रमा की चौथी, शनि की नौवीं, गुरु की छठी तथा मंगल की सातवीं होरा होगी//
    इस तथ्य का ज्ञान मुझे पहले से था लेकिन यह बात अब तक समझ नहीं आई कि ग्रहों का यह क्रम किस आधार पर रखा गया है ? यदि इसका कोई विज्ञानिक कारण है तो कृप्या बताने की कृपा करें

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  3. आदरणीय वेद और पुराण को पढ़ने और मानने वाले, आप सब से एक बात कहना चाहता हु अगर आप पुराण पढ़ते हो तो एक पुराण पढ़ लेने से कभी भी आपको संपूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं होगा क्योकी एक ही पुराण में सब कुछ नहीं बताया गया है कुछ चीजे एक पुराण में कही गई तो उसके आगे के बात दूसरी पुराण में कही गई है जिसके कारण आप सभी आप में उसको सही से जोर नहीं पा रहे हो इसलिए सबसे पहले आप १८ पुराणो को पढ़े आप सभी को इसका सभी मतलब समझ में आ जाएगा की पृथवी और ब्रहमाण्ड कैसे कार्य करता है आप सीना ठोक के नासा को गलत साबीत कर सकते हो, हो सकता है आज जो सोलर सिस्टम की आप लोग बात कर रहे हो वह ऐसा हो ही नहीं सोलर सिस्टम का मतलब कुछ और ही है इसलिए आपको सोलर सिस्टम को जानने के लिए एक वेद
    में बताये हुय रहस्य का उजागर करता हु…

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  4. वेद का मतलब है, मनुष्य, तुम जो इस पृथवी पर आये हो तो क्यों आये तुम्हारा उद्देश्य क्या है यह सब बताने के लिय वेद ने संपूर्ण पृथवी और ब्रहमाण्ड के बारे में एक एक चीज आपको बहूत ही अस्टपता से बताया है उनमे से कुछ के नाम आज के युग के अनुसार मै बतला रहा हु ताकी अगर वास्त्व में आप लोग ज्ञान के इझुक है तो आप अपना सही ज्ञान वेद के द्वारा प्राप्त कर लेगे क्योकी वेद की महिमा बहूत ही विचित्र है जिसे गहन अधयन्न के द्वारा समझा जा सकता है जो आप अभी वास्तवीक तौर से देखते हो बात वही से बताना शुरू करता हु आप सभी पृथवी पर रहते है पृथवी का मध्य वेद में जम्बू द्वीप बताया है जो इस समय उसे आप बरमुडा के नाम से जानते हो, बरमुडा में ही मेरू पर्वत है, बरमुडा में ही समुद्र मंथन हुआ था, जम्बू के उत्तर में ३ देश रमय्क देश, हरिमन्य देश, उतराकुरु देश अर्थात साउथ अमेरिका, नार्थ अमेरिका, डेनमार्क है जम्बू के दक्षिण में भरत देश, किम्पूरुष देश, हरिदेश है अर्थात एसिया, यूरोप, अफ्रिका है दक्षिण और पश्चिम के बिच हेम्वर्त देश अर्थात आसटेलिया है पूरब में भाद्रश देश, अर्थात नार्थ अटलाटिका पश्चिम में केतुमाल देश है अर्थात साउथ अटलाण्टिका, पृथवी के निचे ६ मर्यादा पर्वत है जिस पर यह पृथवी टिकी हुई है बाकी के द्वीप जो है केसर पर्वत जिसे छोटा पर्वत या पिलर कहा सकते है संपूर्ण बहमाण्ड का भेद पृथवी से ही है

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  5. पृथवी के ७ महत्वपुर्ण द्वीप है जिससे सारा का सारा ब्रहमाण्ड का कार्य चलता है जिसका नाम जम्भू द्वीप, पल्क्षद्वीप, शाकद्वीप, शामाल्द्वीप, कुशद्वीप, क्रोच्चाद्वीप, पुष्करद्वीप, इसमे से जम्बू तथा पुष्करद्वीप बहूत ही ज्यादा महत्वपूर्ण है जिसका नाम आज के अनुसार बरमुडा (bermuda)और निहाऊ आइजलैण्ड (Ni'ihau island) है इसे आगे क्या बताऊ अब आप खुद पता करो तभी सचा ज्ञान मिल सकता है हो सकता है की आप भी सौर मंडल का मानचित्र बना कर दूसरो को बतला सको जो सही है अगर यह नहीं कर सकते है तो वही करो जो सामने वाला कह रहा है

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  6. वेद कोई एक पुस्तक नहीं है जिसे आप ऐसे ही समझ जाओगे वेद एक बहूत ही रहस्यमय ग्रन्थ है जिसमे जादुई शव्दों के द्वारा सम्पुर्ण चीजे बताई गई है इसमे महान विज्ञान है, महान समाज है, महान विद्या है, महान धर्म है, पुराण में संपूर्ण ब्रहमाण्ड है जो सभी आज के भाषा में वैज्ञानीक नीतियों के आधार पर वेवस्थित है जो आज के विज्ञान के लिए एक ही ग्रन्थ में लिख देना असंभ ही नहीं महा असम्भव है जिसे एक बार पढ कर नहीं समझा जा सकता है

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  7. lwin singh sek ji me aapki ek book "rahashyamaya puran prarambh bhaga"
    ke kuch ansh pare h par muje ek shanka h ki kaliyug ke rajao ka varnan
    kis puran me itna detail me diya h ki 2016 me modi ji ke bare me claer
    bataya gaya h.
    mene 18 puran ki geneology dekhi h unme toh esa kahi nahi h

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  8. aap ki sare bate sahi h like sare dwipo ke bare me
    , calculation about yug

    in sab ke alawa mene p.n oak ki world vedic heritage bhi pari h
    toh app muje nuasikhiya na samje


    agar is bare me koi datails h toh plzzzzzzzzzzzz aap sohani_swadeep@rediffmail.com pr
    mail kare h ya 9165956362 pr call kare


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  9. जहां आपने मोदी जी का नाम लिया है वह सीधा ना कह के समस्त शब्दों को पर्यावाची में कहा गया है जैसे मोदी मंत्रीमण्डल के बारे में पुष्पमित्र नामक राजा राज्य करेगा इस प्रकार लिखा है

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