अंतिम प्रभा का है हमारा विक्रमी संवत यहाँ, है किन्तु औरों का उदय इतना पुराना भी कहाँ ?
ईसा,मुहम्मद आदि का जग में न था तब भी पता, कब की हमारी सभ्यता है, कौन सकता है बता? -मैथिलिशरण गुप्त

शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

प्राचीन भारतीय अस्त्र विद्या | Ancient Indian Missiles & Weapons : Mahabharata Era 3000 BC


दोस्तों प्राचीन भारतीयों के पास अस्त्र सस्त्र विद्या भी थी ये हमने सीरियल आदि के माध्यम से देखा है  |
वे सभी सत्य है पदार्थ विद्या (Materials science/Materials Engineering) के जानकारों ने वे सभी हथियार बना लिए थे |
वे अस्त्र मंत्र द्वारा सिद्ध किये जाते थे यहाँ मंत्र का अभिप्राय किसी मंत्र का उच्चारण करना नही है जैसा की हम सभी मानते है वरन मंत्र अर्थात विचार ।
शब्दमय मंत्र या उच्चारण द्वारा कोई पदार्थ उत्पन्न नही किया जा सकता । यदि मंत्र द्वारा तीर पर अग्नि उत्पन्न हो तो वो सर्वप्रथम  मंत्र उच्चारण करने वाले की जिह्वा को ही भस्म कर डाले  इसलिए ऐसा मानना मिथ्या है ।
मंत्र नाम होता है विचार का जैसे राजदरबार में मंत्रणा (विचार-विमर्श) करने वाले को मंत्री कहा जाता है वैसे ही प्रकृति में पाए जाने वाले पदार्थों का पहले विचार फिर क्रिया द्वारा वे अस्त्र आदि सिद्ध किये जाते थे ।

आग्नेयास्त्र (Fire Missile) - इस प्रकार के अस्त्र में किसी लोहे का बाण (Arrow/Missile)  या गोला (Grenade)  बनाकर उसमे ऐसे उच्च जवलनशील पदार्थ रखे जाते थे जो अग्नि के लगाने से  वायु में धुआ फेलने और सूर्य की किरण या वायु के संपर्क में आने से जल उठते थे । और इन्हें किसी कमान या अन्य किसी मशीन की सहायता  से शत्रु सेना पर दाग दिया जाता था |

वारुणास्त्र (Water Missile) -  वारुणास्त्र आग्नेयास्त्र का तोड़ होता था ।  इस मिसाइल में ऐसे पदार्थों का योग होता था जिसका धुआ वायु के संपर्क में आते ही तुरंत जल की बूंदों  में परिवर्तित हो  वर्षा कर देता था और अग्नि को बुझा देता था |

नागपाश - इस प्रकार का हथियार शत्रु के अंगो को जकड के बांध लेता था |

मोहनास्त्र - इस मिसाइल में ऐसे नशीले पदार्थों का योग होता था जिसका धुंए के लगने से शत्रु की सेना निद्रास्थ अथवा मुर्छित हो जाती थी ।
इसका उपयुक्त उदहारण अश्रु गेस के गोले के रूप में समझा जा सकता है जो सरकार अक्सर शांतिपूर्ण तरीके से प्रोटेस्ट कर रहे लोगो पर करती है |

पाशुपतास्त्र (Electric Missile/Weapon) - इस प्रकार के अस्त्र में तार से या शीशे से अथवा किसी और पदार्थ से विधुत उत्पन्न  कर शत्रुओं पर छोड़ा जाता था |

इसी प्रकार तोप (Cannon) बन्दुक (Gun) आदि भी हुआ करते थे । ये नाम अन्यदेश भाषा के है आर्यावर्त या संस्कृत के नही । संस्कृत में तोप को शतघ्नी तथा बन्दुक को भुशुण्डी कहते है |

यह निश्चित है की जितनी भी विद्या तथा मत आदि भूगोल में फैले है वे सब आर्यावर्त से ही प्रचरित हुए है ।
देखो ! एक गोल्डस्टकर साहब फ़्रांस देश के निवासी अपनी पुस्तक 'बाइबिल इन इंडिया' में लिखते है की सब विद्या तथा  भलाईयों  का भंडार आर्यावर्त देश है और सब विद्या इसी देश से भूगोल में फैली है । और हम परमेश्वर से प्रार्थना करते है की जैसी उन्नति आर्यावर्त देश में थी वैसी हमारे देश की कीजिये ।
तथा 'दाराशिकोह' बादशाह ने भी यही कहा की जैसी पूरी विद्या संस्कृत में है वैसी किसी अन्य भाषा में नही । वे ऐसा उपनिषदों के भाषांतर में लिखते है की मैंने अरबी आदि  बहुत सी भाषा पढ़ी परन्तु मन का संदेह छुट कर आनंद न हुआ । जब संस्कृत देखा  और  सुना तब निसंदेह हो कर मुझ को बड़ा आनंद हुआ ।

और अधिक जानने के लिए
http://www.vedicbharat.com/2013/05/scholars-view-about-bharat.html

परन्तु ऐसे शिरोमणि देश को महाभारत के युद्ध ने ऐसा धक्का दिया की अब तक भी यह अपनी पूर्व स्थति में नही आया है क्योंकि जब भाई भाई को मरने लगे तो नाश होने में क्या संदेह है ?

जब बड़े बड़े विद्वान , राजा, महाराजा , ऋषि तथा महर्षि आदि महाभारत के भीषण युद्ध में मारे गये और बहुत से मर गये तब विद्या और वेदोक्त धर्म का प्रचार नष्ट हो चला । ईर्ष्या , द्वेष तथा अभिमान आपस में करने लगे जो बलवान हुआ वो देश को दाब कर राजा बन बैठा । वैसे ही सर्वत्र आर्यावर्त देश में खंड बंड सा राज्य हो गया । इसी क्रम  में वेद विद्या नष्ट हुई ढोंग पाखंड बढता चला गया और आर्यावर्त के पतन के दिन आरंभ हो गये ।

- महर्षि दयानंद सरस्वती , सत्यार्थ प्रकाश 


TIME TO BACK TO VEDAS
वेदों की ओर लौटो । 


सत्यम् शिवम् सुन्दरम्

17 टिप्‍पणियां:

  1. वेदों में आर्यावर्त की सीमा सरस्वती से हिमालय
    गोदावरी से गंगा घाटी (मगध और अंग म्लेच्छ कहे गए है )
    वेदों में इस देश का नाम है भारत

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    1. वेदों के किस मंत्र में भारत आया है दिखाना तो ?

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    2. Bharat ka to pata nahi lekin bharti sabd vedo me hai jo ki bhrat se bana hai. bhrat ka arth hai poshan karna. bharti ka arth hai vah satri jo sabka poshan karti hai aur bharat ka arth hai jo sabka poshan karta hai.

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  2. वेदों में आर्यावर्त की सीमा सरस्वती से हिमालय
    गोदावरी से गंगा घाटी (मगध और अंग म्लेच्छ कहे गए है )
    वेदों में इस देश का नाम है भारत

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  3. इस खोज के लिये औद भारत के आलावा दुनिया को दिखाने के लिये आपको आपके टीम को सादर प्रणाम
    अशोक सिन्हा फिंगेश्वर, रायपुर छत्तीसगढ

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  4. उत्तर
    1. मित्र इस स्थान पर भारत नही भरता: शब्द आया है जिसका अर्थ है सब के धारण और पोषण करने वाला । ये शब्द भारत देश के लिए नही है , इस देश का नाम तो भारत महाभारत काल में पड़ा है वेद उससे कहीं पुराने है
      ये लो प्रमाण
      http://aryasamajjamnagar.org/rugveda_v2/p37.htm

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  5. आपका आलेख और टिप्पणियाँ दोनों ही अपने पक्ष में कर लेने में योग्य हैं।

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  6. प्रिय, बन्धु।
    ये आपने क्या कहा कि मंत्रोच्चारण से यदि तीर पर अग्नि उत्पन्न हो जाती तो उच्चारक की जिह्वा ही भस्म...।
    फिर राग "दीप" मेघादि के बारे में क्या विचार है।

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    1. स्वामी जी,


      जहाँ तक मैं सोच पाया हूँ


      'दीपक' राग सायंकालीन संध्या के समय गाया जाता है और जब वह शुरू होता है तब उजाला होता है और जब उसका अवसान होता है तब 'दीपक' जलाने का समय हो जाता है मुग्ध श्रोताओं को इसका आभास नहीं होता कि 'दीपक' या 'चिराग' जल उठे हैं।


      किन्तु अब ऐसा नहीं रहा। स्थितियाँ बदल चुकी हैं। आज के समय शास्त्रीय गायन के कार्यक्रम में 'प्रचलित दीपक' जलने से रहे। बल्ब, ट्यूब लाइट जलाने वाला डिपार्टमेंट प्रोग्राम की समाप्ति पर फेड आउट और लाइट का खेल निश्चित किये रहता है।

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    2. स्वामी जी,


      जहाँ तक मैं सोच पाया हूँ


      'दीपक' राग सायंकालीन संध्या के समय गाया जाता है और जब वह शुरू होता है तब उजाला होता है और जब उसका अवसान होता है तब 'दीपक' जलाने का समय हो जाता है मुग्ध श्रोताओं को इसका आभास नहीं होता कि 'दीपक' या 'चिराग' जल उठे हैं।


      किन्तु अब ऐसा नहीं रहा। स्थितियाँ बदल चुकी हैं। आज के समय शास्त्रीय गायन के कार्यक्रम में 'प्रचलित दीपक' जलने से रहे। बल्ब, ट्यूब लाइट जलाने वाला डिपार्टमेंट प्रोग्राम की समाप्ति पर फेड आउट और लाइट का खेल निश्चित किये रहता है।

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    3. मेघ मल्हार आदि रागों के साथ भी वैज्ञानिक सोच से विचार किया जा सकता है। किसी भी कार्य के होने में कारण-कार्य सम्बन्ध अवश्य विचारना होगा अन्यथा बिना तेल के दीपक और बिना जलाये दीपक जलाये जाते रहेंगे। अतियोक्ति अलंकार भावातिरेक का परिणाम जरूर है लेकिन उसका कला के क्षेत्र में बहुत महत्व है।

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  7. राजु सीएचअगस्त 31, 2017 7:51 pm

    हम अभिभी पिछडे हुएं हैं पानीकि वर्षा करनेवाले मिझाइल्स अपना दुष्मन चीनने कभीका बनाया था हमने उसका प्रयोग सन २०१२ में मुंबई में किया था जब मुंबई मे बारिश नही हुई थी ! अगर मै गलत हूं तो सुधारो !

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  8. Sir plz btayien Sudarshan chakra kaisa hathyar tha,kya ye sachmuch dushman Ka pichha karta that aur wapis aa jata tha , kya ye Kalpana matr hai?? Ye chakkar kyuun ITNA khatak that???

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